Monday, 30 September 2024

 The 7th Rashtriya Poshan Maah, celebrated across India in 2024, marks a significant milestone in the country’s ongoing battle against malnutrition. This monthlong campaign, an integral part of India’s mission to eradicate nutritional deficiencies, has brought renewed energy and focus to the national discourse on health and nutrition.

Since its inception in 2018, Poshan Maah has become an annual event of paramount importance. Over the past seven years, Poshan Maah and Poshan Pakhwada campaigns have been conducted, each building upon the successes of its predecessors. These awareness drives have cumulatively reported over 100 crore nutrition-centric sensitization activities, addressing various themes crucial to India’s nutritional landscape.

Mera Parivar join this initiative to extends its reach to local areas and organised series of activity with communities and stakeholders. At six locations in Delhi NCR Rajiv Nagar, Sheetla colony, Surat Nagarn, Ashok Vihar Gurugram.



Mera Parivar team organized activities : Breastfeeding and complementary feeding, Anaemia(undestandand combat anemia), Poshan Bhi, Padai Bhi,  Nutrition related competition, community base programme, growth monitoring, Nutrition workshop Children, women and community workers were main beneficiary.

Saturday, 19 February 2022

Sponsor A child

 Mera Parivar affirm for Children education


 
      Quarterly meetings with Primary and Secondary School´s directors


  




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Monday, 31 May 2021

अखंड भारत की शान... मानवता है पहचान''

 अखंड भारत की शान... मानवता है पहचान''


कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी... कई धर्म के लोग इस देश में... जाने कितनी जाति... फिर भी सबका दिल है हिंदुस्तानी...
विविधताओं भरे इस देश में अलग-अलग धर्म जाति के लोग हैं, सबका रहन-सहन अलग है। यहां तक की बोली-भाषा भी....बात जब देश की आती है, देशवासियों की आती है, तब धर्म-जाति, ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी से ऊपर उठकर एकजुट हो जाते हैं...एक दूसरे के साथ खड़े हो जाते हैं।
जब जब देश पर मुसीबतें आई देश एक साथ उठ खड़ा हुआ। सारी दीवारें टूटकर बिखर गई, और खड़े हो गये हम हिंदुस्तानी...
देश की सीमाओं पर लड़ने वालों के नाम अलग अलग है,लेकिन कहलाते हैं देश के सैनिक... वैसे ही देश की आंतरिक सुरक्षा प्रदान करने वालों को हम पुलिस कहते है। इन जगहों पर कोई हिंदू, मुस्लिम, जैन, सिख, ईसाई नहीं होता।
कुछ ऐसी ही मिसाल का परिचय एक बार फिर देशवासियों ने दिया है। देश इन दिनों कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जुझ रहा है। इस वायरस ने देश के हर कोने में हाहाकार मचा रखा है। लेकिन इस बुरे वक्त में क्या हिंदू, क्या मुस्लिम, क्या सिख और क्या इसाई... सबने मिलकर मानवता का परिचय दिया है।
जब कोरोना मुसीबत बनकर देशवासियों पर टूटा तो कोरोना मरीजों को बेड मिलने में असुविधा होने लगी, ऐसे में धार्मिक स्थलों ने अपने द्वार को जरूरतमंद मरीजों की मदद के लिए खोल दिया।
गुरुद्वारे में रोज हजारों पीड़ितों, बेसहारों को भरपेट खाना खिलाया जा रहा है, वहीं मदरसे को कोविड सेंटर में तब्दील कर दिया गया है और चर्च की तरफ से मुफ्त में ऑक्सीजन बांटे जा रहे हैं।
मंदिरों-मस्जिदों में कोरोना मरीजों की सुविधा के लिए कोविड केयर सेंटर में तब्दील किया गया है। यहां रहने वाले साधू-संत, मौलाना खुद भी मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं।
इतना ही नहीं तमाम लोग और संस्थाएं खुद सामने आकर जरूरतमंद लोगों की मददगार बनी। मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है और ऐसे कठिन समय में सभी एक साथ आगे आते हुए जरूरतमन्द लोगों की मदद कर रहे हैं।
भारत विश्वभर में अपनी संस्कृति के लिए यूं ही नहीं जाना जाता है। भारत एक गुलदस्ते की तरह है, जिसमें अलग-अलग तरह के फूल हैं, पर सब मिलकर एकता की खुशबू बिखेर रहे हैं। भारत यूं  ही महान नहीं है... भारत को महान बनाती है, यहां की संस्कृति, यहां का आचरण, यहां की सोच और यहां के लोग...
हमारा भारत देश महान
दुनिया यूं ही नहीं करती बखान
धर्म-जाति से उपर है कर्म प्रधान
क्रोध-मोह त्याग कर करते हैं सम्मान
मुसीबतों की घड़ी में करते हैं जगकल्याण
नित नये दिन देश कर रहा उत्थान
हमारा भारत देश महान
 -साभार ''मेरा परिवार''  

Sunday, 30 May 2021

''कोरोना से नहीं... भूख से डर लगता है साहेब''

 

''कोरोना से नहीं... भूख से डर लगता है साहेब''
एक तरफ कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ी जा रही है, तो दूसरी तरफ एक तबका पेट की भूख की लड़ाई लड़ रहा है...
लाख कोशिशों के बावजूद वो इस जंग को जीत नहीं पा रहा है... हालत इतनी दयनीय हो गई है कि उनके मुंह से बस ये बोल निकलते हैं- कोरोना से नहीं भूख से डर लगता है साहेब...
बेबसी से सने चेहरे, आंखों से टपकते आंसू, थरथराते दोनों हाथ और कपकपाते बोल- साहेब इस अंधेरी रात की सुबह कब होगी
साहेब कुछ खाने को है... पिछले दो दिनों से कुछ खाया नहीं साहेब... अब ये पेट धड़ाधड़ अतड़ियां तोड़ने पर लगा है साहेब... मैं तो इन अतड़ियों को समझा लूंगा, नहीं समझेगा तो इसे गमछे से कसकर बांध लूंगा... पर इन बच्चों को देखो साहेब... अब इसके लबों से बोल तक नहीं निकल रहे... पहले जो दिन रात पटर पटर बातें करते रहते थे, अब वो कैसे मुरझा गये हैं...
अब दीनहीन मजदूर का सब्र का बांध टूट गया, बड़ी मुश्किल से जो उसने अपनी आंखों में समंदर को समेट रखा था, वो फट पड़ा...
हिचकियां लेकर लेकर रोते हुए कहने लगा, साहेब... ये सरकार क्यों नहीं समझती, हम रोज कमाने वाले और खाने वाले का दर्द... रोज कमाता तो मुश्किल से उदर भरता था... अब काम ही नहीं है... आप बताओ, क्या कमाऊं और क्या खाऊं...
कोरोना तो बाद में जान लेगी, लेकिन ये भूख हमें पहले  मार देगी साहेब... आप कुछ करो ना साहेब...
चार दिन पहले एक नेक इंसान आया था, उसने हमें खाना दिया, हमने उसमें से थोड़ा खाना बचा कर रख लिया था, लेकिन इस गर्मी ने उसे भी खराब कर दिया, वो छोटा वाला बच्चा है ना(उंगली छोटे बच्चे की तरफ दिखाते हुए) उसने कहा बाबा- खाना खराब हो गया है, मैंने उसे समझाया, पगले हमारे लिए खाना खराब नहीं होता, बड़े घरों में खाने में किस्म किस्म की मसाले डालते हैं, उसी की खटास है, जल्दी जल्दी खा लें।
अब देखो साहेब, उसका मुंह कैसे पिचक गया है, खाली पेट की वजह से अधमरा पड़ा है... 
साहेब आप जा रहे हो, सुनो मेरा इतना काम कर देना, मेरी बात सरकार तक पहुंचा देना, अब जब कोई महामारी आये तो लॉकडाउन लगाएं, क्योंकि हम गरीब बीमारी से नहीं भूख से मर रहे हैं। पता नहीं हम इस लॉकडाउन की सुबह देख पायेंगे या नहीं, लेकिन साहेब, ये तड़पती आत्मा की आवाज़ है- कोरोना से नहीं... भूख से डर लगता है साहेब!

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